प्रसिद्ध नाटककार विनोद रस्तोगी की कहानी हुई साकार जयपुरः जवाहर कला केंद्र के रंगायान सभागार में सोमवार, 31 अक्टूबर को प्रसिद्ध न...
प्रसिद्ध नाटककार विनोद रस्तोगी की कहानी हुई साकार
जयपुरः जवाहर कला केंद्र के रंगायान सभागार में सोमवार, 31 अक्टूबर को प्रसिद्ध नाटककार विनोद रस्तोगी की कहानी ‘भगीरथ के बेटे’ साकार हुई। अजय मुखर्जी के निर्देशन में रंगकर्मियों ने नौटंकी के रूप में इसे पेश किया, जिससे परिश्रम के महत्व का संदेश दर्शकों तक पहुॅंचा।
समस्याओं के पहाड़ ने बढ़ाई मुसीबत
गीतों और मजबूत संवादों के साथ हुई प्रस्तुति ने वाहवाही लूटी। सूखे और भुखमरी से त्रस्त गाॅंव की महत्वाकांक्षा के साथ इसकी शुरुआत होती है। परिश्रम के बल पर ग्रामीण गाॅंव में नहर लाना चाहते हैं। पहाड़ उनके सामने समस्या के रूप में खड़ा रहता है। जमींदार मदन सिंह जो अपनी बंजर जमीन को दान कर काम को आसान बना सकता है, ग्रामीणों को दुत्कार देता है।
बहती धारा लाई खुशी
शहर से पढ़कर गाॅंव लौटा मदन सिंह का बेटा मंगल सिंह अपने पिता को समझाने का प्रयत्न करता है। पिता के नहीं मानने पर मंगल भी ग्रामीणों के साथ पहाड़ तोड़ने के काम में जुट जाता है। मंगल के चोट लगने पर जमींदार की आंखें खुलती हैं। अंत में नहर की बहती धारा सभी के लिए खुशी का संदेश लाती है।
शुभम पालीवाल ने मदन सिंह, दिग्विजय सिंह राजपूत ने मंगल सिंह, अभिलाष ने पण्डित, रोहित यादव ने गंगू, रजत कुशवाहा ने मंगू, अरुण कुमार ने वैद्य व प्रतिमा श्रीवास्तव ने चौधराइन का रोल अदा किया। मंच से परे आलोक रस्तोगी ने प्रस्तुतकर्ता व सुजाॅय घोषाल ने प्रकाश संयोजन की भूमिका संभाली। वहीं उदय चन्द परदेसी, मास्टर फूलचंद व प्रवीण कुमार ने क्रमशः हारमोनियम, नक्कारा व ढोलक पर संगत की। अक्षत अग्रवाल व उनके साथियों ने कोरस किया।
जयपुरः जवाहर कला केंद्र के रंगायान सभागार में सोमवार, 31 अक्टूबर को प्रसिद्ध नाटककार विनोद रस्तोगी की कहानी ‘भगीरथ के बेटे’ साकार हुई। अजय मुखर्जी के निर्देशन में रंगकर्मियों ने नौटंकी के रूप में इसे पेश किया, जिससे परिश्रम के महत्व का संदेश दर्शकों तक पहुॅंचा।
समस्याओं के पहाड़ ने बढ़ाई मुसीबत
गीतों और मजबूत संवादों के साथ हुई प्रस्तुति ने वाहवाही लूटी। सूखे और भुखमरी से त्रस्त गाॅंव की महत्वाकांक्षा के साथ इसकी शुरुआत होती है। परिश्रम के बल पर ग्रामीण गाॅंव में नहर लाना चाहते हैं। पहाड़ उनके सामने समस्या के रूप में खड़ा रहता है। जमींदार मदन सिंह जो अपनी बंजर जमीन को दान कर काम को आसान बना सकता है, ग्रामीणों को दुत्कार देता है।
बहती धारा लाई खुशी
शहर से पढ़कर गाॅंव लौटा मदन सिंह का बेटा मंगल सिंह अपने पिता को समझाने का प्रयत्न करता है। पिता के नहीं मानने पर मंगल भी ग्रामीणों के साथ पहाड़ तोड़ने के काम में जुट जाता है। मंगल के चोट लगने पर जमींदार की आंखें खुलती हैं। अंत में नहर की बहती धारा सभी के लिए खुशी का संदेश लाती है।
शुभम पालीवाल ने मदन सिंह, दिग्विजय सिंह राजपूत ने मंगल सिंह, अभिलाष ने पण्डित, रोहित यादव ने गंगू, रजत कुशवाहा ने मंगू, अरुण कुमार ने वैद्य व प्रतिमा श्रीवास्तव ने चौधराइन का रोल अदा किया। मंच से परे आलोक रस्तोगी ने प्रस्तुतकर्ता व सुजाॅय घोषाल ने प्रकाश संयोजन की भूमिका संभाली। वहीं उदय चन्द परदेसी, मास्टर फूलचंद व प्रवीण कुमार ने क्रमशः हारमोनियम, नक्कारा व ढोलक पर संगत की। अक्षत अग्रवाल व उनके साथियों ने कोरस किया।
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