जयपुर। आजादी से पूर्व अंग्रेजों ने स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए हमारे इतिहास को विकृत करने का प्रयास किया। आजादी के बाद तत...
जयपुर। आजादी से पूर्व अंग्रेजों ने स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए हमारे इतिहास को विकृत करने का प्रयास किया। आजादी के बाद तत्कालीन राजनीतिक नेतृत्व ने भी पश्चिम परस्त इतिहासकारों का उपयोग कर हमारे इतिहास को विकृत करने का प्रयास किया और सांप्रदायिक तुष्टिकरण की नीति के तहत उसे कमतर करने के लिए मिथक गढे गये तथा उन्हें सत्ता के सहारे प्रमाणित सिद्ध कर प्रचारित किया गया। जिसका दंश संपूर्ण समाज दशकों से झेल रहा है। यह कहना था श्री क्षात्र पुरुषार्थ फाउंडेशन के संरक्षक महावीर सिंह सरवड़ी का।
सरवड़ी ने रविवार को पिंक सिटी प्रेस क्लब में पत्रकारों से इतिहास से छेड़छाड़ विषय पर बातचीत की। उन्होंने कहा कि विगत वर्षों में यह सांप्रदायिक तुष्टिकरण जातीय तुष्टिकरण में परिवर्तित हो गया है और इसे घोषण देने के लिए वर्तमान राजनीतिक नेतृत्व द्वारा हमारे इतिहास को निशाना बनाया जा रहा है। अनेक राजनीतिज्ञ अपनी व्यक्तिगत कुंठाओं को तुष्ट करने के लिए अपने पद और प्रभाव का दुरुपयोग कर हमारे इतिहास को विकृत करने का प्रयास कर रहे हैं। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से मिलते जुलते नामों के आधार पर बहुत सारा तथ्यहीन साहित्य छपवाया और बँटवाया जा रहा है तथा सोशल मीडिया पर ऐसी मुहीम जारी है। तुष्टिकरण की इस मुहीम के चलते जातिगत टकराव और विद्वेष में बढ़ोतरी हुई है जो देश की एकता और अखंडता के लिए घातक है इतिहास और वर्तमान में भी विश्व के कई देश ऐसे सामाजिक तनावों के चलते विस्फोटक स्थिति में पहुँच चुके हैं।
श्री क्षात्र पुरुषार्थ फाउंडेशन से जुड़े यशवर्धन सिंह शेखावत का कहना है कि ऐतिहासिक महापुरुष किसी जाति और समुदाय की संपत्ति न होकर हमारे राष्ट्रीय नायक हैं। उनके इतिहास और वंशगत पहचान को विवादित बनाकर अपनी राजनीति का पोषण करने का प्रयास ना केवल निंदनीय है बल्कि सामाजिक अपराध भी है और यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पहले तथाकथित वामपंथियों ने यह प्रयास किया और वर्तमान में तथाकथित दक्षिणपंथियों के द्वारा भी ऐसे प्रयासों को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
इसके लिए मेवाड़ की स्वतंत्रता के नायक राणा पूंजा जी सोलंकी की वंशगत पहचान बदल कर उन्हें भील घोषित किया गया। राष्ट्र की आवश्यकता के लिए अपनी संतान का बलिदान देने वाली क्षत्राणी पन्नाधाय खींची को गुज्जर बताया गया। पूर्वी उत्तरप्रदेश के नायक महाराजा सुहेलदेव बैंस को पासी या राजभर घोषित किया गया और उनके नाम पर एक जातिवादी राजनीतिक दल ही बना दिया गया है। गुर्जर क्षेत्र को गुज्जर जाति के साथ जोड़ कर सम्राट मिहिरभोज, सम्राट पृथ्वीराज चौहान, महाराजा अनंगपाल आदि राष्ट्रनायकों को गुज्जर घोषित करने का षड़यंत्र चल रहा है। गुजरात सरकार का पर्यटन विभाग जिस मोढेरा मन्दिर को 2 वर्ष पूर्व सोलंकी राजपूतों द्वारा निर्मित बता रहा था वह आज उसे गुज्जरों द्वारा निर्मित बताते हुए ट्वीट करता है और फिर डिलीट कर देता है। गुजरात में राज्य सरकार ने तो अपनी वेबसाइट पर ही गुजरात को गुज्जरों की भूमि बता कर परमार, प्रतिहार सोलंकी, चौहान आदि क्षत्रिय वंशों को गुज्जर बता दिया जबकि वस्तु स्थिति यह है कि आज भी गुजरात में गुज्जर जाति की जनसंख्या नगण्य है और गुजरात सरकार द्वारा अधिसूचित जातियों में गुज्जर जाति का उल्लेख तक नहीं है। इस बाबत हम गुजरात के माननीय मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर अवगत करवा चुके हैं।
वर्तमान राजस्थान सरकार के पूर्व शिक्षा मंत्री ने तो पाठ्यक्रम में ही बदलाव करवा दिया। महाराणा प्रताप की जिस महानता के कारण मुगल सेनापति अब्दुर्रहीम खानखाना संत रहीम बन गए. उस घटना का विवरण ही पाठ्यक्रम से हटा दिया गया। नारी स्वाभिमान की आदर्श प्रतीक रूठी रानी उमादे भटियाणी के संबंध में भ्रमक जानकारी दी गई, मेवाड़ राज्य के लिए आत्मबलिदान करने वाली कृष्णा कुमारी के बलिदान को हत्या बताया गया, प्रसिद्ध लोकदेवता गोगाजी चौहान के बारे में भ्रामक जानकारी दी गई आदि आदि। इस प्रकार राजनेताओं, सामाजिक संगठनों, साहित्यकारों, फिल्मकारों, विभिन्न समाजों के शरारती तत्वों द्वारा बार बार हमारे इतिहास को विकृत करने का प्रयास किया जा रहा है, विभिन्न स्थानों पर राजनीतिक फायदे के लिए इन राष्ट्रनायकों की जातिगत पहचान बदल कर मूर्तियां लगाई जा रही हैं। गाजियाबाद, फरीदाबाद, ग्वालियर के साथ साथ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, प. उत्तरप्रदेश, हरियाणा आदि राज्यों में हुए ऐसे समारोह इसके उदाहरण हैं।
राजपूतों ने इस राष्ट्र के लिए अचिन्त्य बलिदान दिए हैं और आदिकाल से ही अपनी पीढ़ियों को खपाकर आतताइयों से संघर्ष किया है। इतिहास हमारी सर्वाधिक मूल्यवान संपत्ति है और प्रत्येक राजपूत इसके प्रति अतिसंवेदनशील है। जो लोग अपनी क्षुद्र राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के लिए हमारे पूर्वजों की पहचान को विवादित बनाने के प्रयासों को प्रोत्साहित करते हैं, समाज उनके इस कृत्य को केवल दुर्भाग्यपूर्ण ही नहीं मानता बल्कि हमारे संपूर्ण समाज के प्रति षड़यंत्र पूर्वक अपराध मानता है। हम ऐसे प्रत्येक षड़यंत्र का विरोध करते हैं, हमारे स्तर पर हम समाज के प्रत्येक घटक को इन षड़यंत्रों के प्रति जागरूक कर रहे हैं एवं उचित संवैधानिक तरीकों से ऐसे तत्वों को हतोत्साहित करने को प्रेरित कर रहे हैं।
हम सभी समाजों के समझदार तबके से ये अपील करते हैं कि अपने समाज के अति महत्वाकांशी एवं उपद्रवी तत्वों पर अंकुश लगाएं अन्यथा ये गैर जिम्मेदार लोग अपने अपने समाजों की छवि तो धूमिल करेंगे ही साथ ही अन्य समाजों से टकराव भी बढ़ाएंगे।
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